माँ वसुंधरा तुझको पुकारे !
माँ वसुंधरा तुझको पुकारे !
किरणों का गोटा लगाए
हरियाली का दुशाला ओढ़े
फिर भी वो घायल कितनी
देखो तो ज़रा सिसकती हुई
माँ वसुंधरा तुझको पुकारे !!
आया है ये कैसा मौसम
जो डसता रहता है हरदम
यहाँ वहाँ जहाँ भी देखा
जल रहा है बसंत सुहाना रे
माँ वसुंधरा तुझको पुकारे !!
माना कि है पास में सबकुछ
फिर भी खाली लगता है अब
हम क्या करें और कैसे करें
ऊपर वाले अब तू ही बता रे
माँ वसुंधरा तुझको पुकारे !!