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Shipra Verma

Inspirational

5.0  

Shipra Verma

Inspirational

माँ तुम "घर" थी

माँ तुम "घर" थी

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माँ तेरी शिकायत सही है

मैंने तुझे भुला-सा दिया है

अपनी ही शिकायतों में उलझी

मैंने तुझे अनसुना किया है

 

वरना जीवन के कर्मयुद्ध में

धर्म मार्ग पर चलते हुए

मैं कभी निराश नहीं होती

मैं कभी हार नहीं जाती 

 

वो तेरे ही बल के कारण

मैंने आसमां से ऊँची अपेक्षाएं की

तूने जो आँखें मूँद ली तो

हिम्मत मेरी सब टूट गई!

 

तुम 'घर' थी माँ, अब तेरे बिना

'जंगल'-सी भटक गई हूँ मैं

तेरी सीख, तेरे संरक्षण बिना

खुद को ही भूल गई हूँ मैं!

 

अब चाहे प्रयत्न करूँ जितना

मैं अपने आप नहीं चल सकती

"मैं" हूँ ही नहीं कुछ तेरे बिन माँ

मैं तुम बिन रह नहीं सकती!


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