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PRADYUMNA AROTHIYA

Tragedy

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PRADYUMNA AROTHIYA

Tragedy

माँ थक रही है... प्रद्युम्न अरोठिया

माँ थक रही है... प्रद्युम्न अरोठिया

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माँ थक रही है

या उम्र बढ़ती जा रही है।

आँखें कुछ दबी दबी सी,

चाल कुछ धीमी

और आवाज भी कुछ धीमी होती जा रही है !!

चिंताओं की रेखाओं में

भविष्य की कोई अदृश्य नदी

अपने आवेग से बहती जा रही है !

कुछ नहीं है

है अंधेरा ही अंधेरा

फिर भी उजालों की तलाश में

निरन्तर बढ़ती जा रही है !!

वो बदली नहीं 

जमाने की रंगत से 

वही कर्म की पोटली सिर पर उठाए चली जा रही है !

दूर मंजिल है बहुत

यह जानकर भी थके पैरों से

वो जीवन के संघर्ष पथ पर चली जा रही है !!

कुछ मिला अपनों से

इस चिंता से दूर

बस अपनों के लिए जिए जा रही है !

जिंदगी है

सुख दुःख को अमृत सा पिए जा रही है !!



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