माँ मेरी...
माँ मेरी...
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
हर समस्या का हल था उसके पास,
हर सवाल का जवाब थी,
माँ मेरी किताबों की ...
हर मर्ज का इलाज था उसके पास,
हर दर्द की दवा थी,
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
संस्कृति और सभ्यता का
ज्ञान था उसको,
संस्कारों की खान थी
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
संबंधों को जानती थी वो,
अपनों की पहचान थी।
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
स्वाद था उसके हाथों में,
पकवानों की जान थी।
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
भरती थी वो सब की झोली,
अन्नपूर्णा का रुप थी।
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
सीख थी उसकी बातों में,
सच्चाई की राह थी।
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
डांट में उसके चिंता,
ममता का आधार थी।
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।
जो चाहो उनसे सीखलो,
ज्ञान का वो भंडार थी।
माँ मेरी किताबों की दुकान थी।