माँ मैं खुद अपनी जान बचाऊंगी
माँ मैं खुद अपनी जान बचाऊंगी
माँ मुझ को तुम ड्रेस एक अब काँटों की सिलवा दो।
अंदर उसमें नरम नरम ममता का पट लगवा दो।
मैं जब भी बाहर जाती हूँ तो आशंकित हो जाती हूँ।
पीछे कदमों की आहट सुन मैं मन ही मन डर जाती हूँ।।
अब नहीं रहा विश्वास मुझे नर वेष में दिखते पिशाच मुझे।
करवा दो कलम के साथ-साथ पिस्टल चालन अभ्यास मुझे।।
मैं खुद सबसे भिड़ जाऊँगी, खुद अपनी आन बचाऊँगी।
मैं तेरी बहादुर बेटी हूँ तेरी लाज नहीं गवाऊँगी।।
जो सृजन है सृष्टि की, नारी शक्ति है वो...
ममत्व की जननी है वो, सतीत्व की रक्षा है वो,
सपनों का साया है वो, वह अपनों की माया है वो।।