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Harat Kumar

Abstract

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Harat Kumar

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प्रेम का रंग

प्रेम का रंग

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प्रेम का रंग है, जब-जब उड़ा,

कोई कहानी हो गई,

कल राधा दीवानी थी,

आज मीरा दीवानी हो गई।

पिंजरे को तोड़ मन आसमान

को छूने चला,

बावरी हवा के संग मन

बावरा उड़ने लगा।

ये सबसे अलग है,

पाँव पड़े जब धरती पे,

धरती आसमानी हो गई,

कल राधा दीवानी थी,

आज मीरा दीवानी हो गई।


ऋतुओं के समागम में हृदय

भी सहभागी है,

समय से परे प्रेम में समय भी

सहभागी है।

प्रेम में डूबा जग है,

प्रेम के बाग प्रफुल्लित हुए,

हर ऋतु सुहानी हो गई,

कल राधा दीवानी थी,

आज मीरा दीवानी हो गई।


ये मोह का बंधन टूटा तो प्रेम

की छाया दिखीं,

संपूर्णता प्रेम में है, प्रेम से ही

संपूर्णता मिलीं।

ब्रह्मांड भी मगन है,

नदियों में उफान है, प्रकृति

ब्रह्मांड की रानी हो गई,

कल राधा दीवानी थी,

आज मीरा दीवानी हो गई।


कान्हा भी प्रेम से जग में

विस्तारित हुए,

राम भी हर्षित हुए, शिव भी

पुलकित हुए।

ये प्रीत का रंग है,

जब लगा सीता को,

वह पानी पानी हो गई,

कल राधा दीवानी थी,

आज मीरा दीवानी हो गई।


आज वृक्ष के शाखाएँ-लताएँ

झूम उठे है,

मिट्टी में दबे बीज भी अंकुरित

हो चुके है।

ये प्रक्रिया सहज है,

सुगंधित वातावरण में

दुनिया मस्तानी हो गई,

कल राधा दीवानी थी,

आज मीरा दीवानी हो गई


जीव-जन्तु भी प्रेम की

भाषा जानते है,

प्रेम के रंग-रूप को भी

वह पहचानते है

ये बढ़ता-सा धीरज है,

जिससे हर सूरत जानी

पहचानी हो गई,

कल राधा दीवानी थी,

आज मीरा दीवानी हो गई  


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