माँ मैं हारा नहीं
माँ मैं हारा नहीं


माँ मैं हारा नहीं
तेरे सिवा जग में मेरा कोई सहारा नहीं
थक गया था मैं चलते-चलते
जीवन मेरा किसी ने संवारा नहीं।
दो घड़ी तेरी गोदी में सिर रखकर
चैन से सोना चाहता था
साथ तेरा,
नील गगन को भी गंवारा नहीं।
पीठ मेरी नेह में
किसी ने थपथपाई नहीं
जब रातों को नींद मुझे आई नहीं।
माँ तेरे सिवा
मुझे किसी ने मीठी लोरी सुनाई नहीं।
सितारों की दुनिया में
में उलझा सितारा था।
इस चकाचौंध की जगमगाती दुनिया में
दूर-दूर तक
कहाँ कोई हमारा था।
माँ तेरे जहान में
साजिशों के जाल कोई भी बिछाता नहीं
भूखा ना सोए मेरा लाल--
यहाँ तो मेरा हक भी
कोई मुझे खिलाता नहीं।
माँ मैं जीते-जी रोज मर रहा था
अश्कों को,
पसीने की बूँदों के हवाले कर रहा था।
कैसे नजरअंदाज करता
तेरी ममतामयी आवाज़
दुनिया की भीड़ में
अब मैं रह गया हूँ अनबुझा सवाल।