मां क्यों न बोल रही हो
मां क्यों न बोल रही हो
आंखें क्यों न खोल रही हो
मां क्यों न कुछ बोल रही हो।
रोज जगाती थी तुम मुझको
आज खुद ही सो रही हो
मां क्यों न कुछ बोल रही हो।
देखो,सूरज कब का उग आया
मिट गया धरा का अंधियारा
कोलाहल चहुं ओर हो रही है
मां क्यों न कुछ बोल रही हो।
मां देख, लाल तेरा तुझे पुकारे
ले ले मुझे तू बाहों के सहारे
मेरी किस भूल की सजा दे रही हो
मां क्यों न कुछ बोल रही हो।