STORYMIRROR

Sunil Kumar

Tragedy

4  

Sunil Kumar

Tragedy

मां क्यों न बोल रही हो

मां क्यों न बोल रही हो

1 min
17


आंखें क्यों न खोल रही हो

मां क्यों न कुछ बोल रही हो।


रोज जगाती थी तुम मुझको 

आज खुद ही सो रही हो 

मां क्यों न कुछ बोल रही हो।


देखो,सूरज कब का उग आया 

मिट गया धरा का अंधियारा

कोलाहल चहुं ओर हो रही है

मां क्यों न कुछ बोल रही हो।


मां देख, लाल तेरा तुझे पुकारे

ले ले मुझे तू बाहों के सहारे

मेरी किस भूल की सजा दे रही हो

मां क्यों न कुछ बोल रही हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy