माँ की विदाई
माँ की विदाई
अधखुली पलकें थी,
धरती की शैया थी।
कभी न खुलने वाली नींद में,
सो रही मैया थी।
पापा के बहते आँसू,
शृंगार कर रहे थे।
कंपकंपाते हाथ मां की,
माँँग भर रहे थे ।
हाथ की हरी चूड़ी,
पांव का महावर।
माथे पर लगी बिन्दी
मां का गान कर रही थी।
बहार अर्थी और गुलाबों की,
माला सज रही थी।
इस लोक से उस लोक में,
मां की डोली उठ रही थी।
हाथ मलते सर पटकते,
हम ठगे से रो रहे थे।
जाती हुई खामोश माँ की,
हम सब विदाई कर रहे थे।
