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Sandhaya Choudhury

Abstract Inspirational

4  

Sandhaya Choudhury

Abstract Inspirational

माँ की रोटी

माँ की रोटी

2 mins
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तन को जला जला कर मां ने गोल गोल रोटी बनायी।

ना सब्जी ना अचार की जरूरत कभी आई।

स्वाद होता बढ़िया बस

नमक छिड़क देती थी माई।

तन को----


कभी-कभी गुड़ की देती ढेली

लपेट लपेट कर हमने ऐसी ही खाई।

अनेकों व्यंजन बनें रसोई में

सब खा कर बस मां की रोटी ही भायी।

तन को----


घी चुपड़ चुपड़ कर जब रोटी हमें देती रहती

क्या बोलूं बस मजा ही आ जाता स्वाद में।

चिमटे से जब रोटी उलट-पुलट करती कभी-कभी जल जाता हाथ भी

फिर भी ना उफ! करती ना करती आह! भी।

तन को-----


देखा है मैंने पहली रोटी गाय को अंतिम रोटी कुत्ते को बिना रुके देती रही माई ने

कभी नहीं थकी देने लेने में ना ही रोटी बनाने में

कहां से लाती है इतना धैर्य इतनी शक्ति और ढेर सारा प्यार भी।

मां मुझको तो तुम लगती हो किसी देवी माई सी

तन को-------


रोटी बनाते बनाते हुए सर में सफेद बाल 

मगर कभी ना रुके ना थके उनके दोनों हाथ।

उसी तरह गोल गोल नरम नरम बनती रही रोटियां।

कभी आलू भरकर तो कभी मटर भरकर और कभी भरकर गोभी।

उस दिन तो जैसे सबका हो जाता पेट बड़ा 

खाते रहते खाते रहते 

कभी न स्वाद मिटा।

तन को-----


शादी के बाद याद आता मां की बनाई रोटी मगर कभी ना बनी मां जैसी रोटी

टेढ़ी-मेढ़ी कच्ची पक्की रोटी बनती जैसे भूगोल

ससुराल वाले कहते हंसते चिढ़ाते बोलते हो तुम बेडौल ।

तन को-------


गुस्सा नहीं आता था मुझको बस प्यार आता था माई 

सब तेरी गुणगान करते सुन सुन मैं इतराई।

मां मैं बस सोचती हूं गोल गोल सीधी साधी रोटी जैसी तुम जैसे पृथ्वी होती है गोल।

हम हैं सूरज चांद सितारे घूमते रहते तुम्हारे चारों ओर।।



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