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डॉ दीप्ति गौड़ दीप

Abstract

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डॉ दीप्ति गौड़ दीप

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मां कभी नहीं थकती

मां कभी नहीं थकती

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सो रहा है सारा घर

भर अलसाई सुबह में,

जाग गई है मां।


घर की सब्जी भाजी की चिंता

करते करते,

उड़ेल देती हैं ममत्व का दुलार।


तनाव भरी गृहस्थी में

झोंक देती है

अपना सारा जीवन,

सारी खुशियां।


मां कभी नहीं थकती

देती आशीष हरदम,

ढाँपती बच्चों की कमियों को।


चिंता की लकीरों में जीती,

अचार के मर्तबानों को धूप दिखाते,

पापड़, बड़ियों को समेटते,

अपने बच्चों के लिए तपती।

मां कभी नहीं थकती ।


अपने हाथों की मखमली

छुअन से

दूर कर देती है

दिन भर की थकन।


रूठने पर मनाने के

तमाम यत्न करती,

त्याग देती रोटी के निवाले।


सहती हर कष्ट,

मां कभी नहीं कहती

मां कभी नहीं थकती।


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