माँ का उपकार
माँ का उपकार
मन की गगरी में यादों का प्रतिबिंब संजो रखा है,
समेटा खुशबुओं को और पुष्पों को बिखेर रखा है,
मैंने माना मेरी माँ नहीं आज इस दुनिया में कहीं,
पर हरपल मैंने उन्हें अपनी यादों में बसा रखा है,
आज चाहे कितनी दूर पहुँच आसमान को छू लूँ,
लेकिन आज भी खुद को इस धरती से जुड़ा रखा है,
वो हमारा तुम्हारा सुंदर घरौंदा आज भी सुशोभित है,
जहाँ मैंने अपनी माँ के पदचिह्नों को छुपा रखा है,
हर तूफानों मुश्किलों से मुझे आज भी बचा लेती ,
उसने तो आज भी मुझे हर संकटों से बचा रखा है,
जरा सी आहट सुनकर माँ मेरी झट से उठ जाती थी,
नींद आई तो लगा जैसे उसने गोद जिसमें सुला रखा है,
मेरी प्यारी माँ तेरा ये उपकार मैं कैसे कब चुकाउंगा,
माँ तूने तो हमेशा मेरे हर उपकरों को चुका रखा है !