STORYMIRROR

Ruchi Mittal

Inspirational

4  

Ruchi Mittal

Inspirational

माँ देदे मुझको बरझी,भाल,कृपाण

माँ देदे मुझको बरझी,भाल,कृपाण

2 mins
384

नहीं हूँ मैं चाँद सी,मैं अंगारा हूँ,

ना हाथ लगाना,मैं जलती ज्वाला हूँ।

मुझसे समाहित लक्ष्मी, सरस्वती,मैं ममता की मूरत हूँ,

गर अपनी सी पर आ गई,तो साक्षात दुर्गा, चंडी की सूरत हूँ।

क्यों पूजते हो मुझे नौ दिन,क्यों करते हो आडम्बर

क्या तुम नहीं जानते,मेरे बिन नही सृष्टि का सृजन।

लगाते मेरे नाम के जयकारे, मंदिरों में माथा टेकने जाते,

मनाते मेरे लिए बेटी,माँ दिवस,और दिखाते मुझपर ही हवस।

गंदी निगाहें, अभ्रद टिप्पणियाँ,छलनी करती रूह को मेरी,

क्या कभी सोचा तूने,गर बेटी होती,उस जगह तेरी।

क्या तब भी तेरा खून न खौलता,फिर क्यों किसी की बेटी की अस्मत तू रौंदता,

मैं हर रूप में समर्पित हूँ,

कभी माँ बन दुलारती,तो कभी बेटी बन आँगन महकाती,

कभी पत्नी बन प्यार लुटाती,तो कभी बहन बन रिश्ते निभाती।

सृष्टि मुझसे शुरू, मुझपे ही खत्म,तू किस दंभ का पाले है भरम,

आज तू किसी बेटी की तरफ,जो गंदी आँख उठाएगा,

कल दस गंदी आँखें,अपनी बेटी की ओर उठती,कैसे रोक पाएगा?

बेटियाँ ईश्वर का वरदान हैं,पूजा के फूल,

मंदिर की अरदास हैं,हमारा गर्व ,हमारी शान हैं,

फिर क्यों करता,मानवता को शर्मसार है।

अब बस बहुत हुआ,नहीं बनना मुझको चाँद सरीखा,

अब लडूँगी अपने हक के लिए,उन वहशी दरिंदों से,जो घूरे हैं मुझे,

नोच लूँगी आँखों की पुतलियाँ,नहीं समझना अब हमें नाजुक तितलियाँ।

बहुत हो चुका चुल्हा, चौका,खुद को सारी उम्र इसमें ही झोंका,

हाँ, अब नहीं बनना मुझको चाँद समान,माँ दे दे मुझको बरछी,भाल, कृपाण।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational