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Kirti Prakash

Classics

4  

Kirti Prakash

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लव यू पापा

लव यू पापा

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जब भी जन्नत का ज़िक्र आया

बाबुल की बाहें बेइंतिहा याद आयी. 


याद आया मुझको अपना बचपन सलोना

याद आया फिर नर्म बाहों का बिछौना

चहकते थे हम बनके गौरैया उनकी

उनके प्यार से बना था मन का कोना कोना. 


घर था कि मंदिर लगता था मुझको

रब सा ही नूर उनमें दिखता था मुझको

वो दीपशिखा बनकर थे जीवन में रौशनी

बिन उनके जीना पड़ेगा कब लगता था मुझको. 


दिया उनका हौसला मै साथ लेकर जी रही

मेरी राह में है रौशनी बस उन्हीं की दी हुई

ज़मीं चाँद हो कि चाँद हो ज़मीं पर

उन बाहों में थी मेरी दुनिया समाई. 


जब भी जन्नत का ज़िक्र आया

बाबुल की बाहें बेइंतिहा याद आयी।


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