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Kirti Prakash

Abstract

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Kirti Prakash

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बन जाओ इंसान

बन जाओ इंसान

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एक छोटी सी चिंगारी

बन शोला दहक उठती है

कभी आँच देकर

रोटियां भी सेकती


भाव मन के तुम भी 

आँच सा सुलगा लो

सार्थक करो जीवन

किसी की निर्वहन बन जाओ


व्यग्र, उग्र, शांति

उल्लास, राग, आस्था

प्रीत, द्वेष, संवेदना

सहायता, क्षमा या रोषना

सब ही मन के खेल रे


तुम चुन लो उपासना

करो इंसानियत की साधना

साधक बनो परिवार में 

मुनि बनके मिलो व्यापार में

धर्म नहीं केवल देवालय में


न मस्जिद चर्च से केवल आलय में

राह में अबला नारी का डर

तेरे धर्म को पुकारती

मासूम के खाली आँखे जब

रोटी को तरस निहारती


तुम धर्म तब अपना याद करो

इंसान हो तो

कर्ज़ इंसा का वहाँ अदा करो

वृद्ध असहाय कंधों को 

तुम बन लाठी कभी मिलो


ना करो अत्याचार कभी कि 

हर प्राणी हम सी तुम सी रचना है

प्रकृति को यूँ सदा सहेजो

इंसान के हित की ही संरचना है 

मिलो सदा ऐसे ही कि


धर्म भी तुमपे नाज़ करे

हे मानव बन जाओ इंसां

काल करे सो आज करे।


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