लव लैंग्वेज
लव लैंग्वेज
सुमुखि खिले थे फूल कभी पहली नजर मेरे।
जूही, चम्पा ,धवल चांदनी रुपहली शजर मेरे।।
निकहत से मेरे ख्वाब ,गुलशन गुलों की सेज।
भंवरों की गुनगुनाहटें, थीं, शाम औ सहर मेरे।।
जिस दिन रचाया ब्याह प्रिये,खिलने लगे गुलाब ।
चढ़ने लगा नशा ग़ज़ब,डग हुए डगमग डगर मेरे।।
खिलने लगे हे चंद्रमुखी! रातों को रजनी गंधा ।
बनके गुलमोहर,अग्नि से कभी दहके पहर मेरे।।
सूर्य मुखी सी ताकतीं मेरा ,चेहरा तुम अपलक।
तन छनन बजती सदा,मन रिद्म और बहर मेरे।।
न जाने क्या होने लगा, खिलीं कमलिनी सी तुम।
खिले कंटकों में फूल 'मीरा'अब झरते नजर मेरे।।