लफ्जों की आग
लफ्जों की आग
लफ्जों की आग में रिश्तों को स्वाहा होते देखा है।
लफ्जों की आग में अपनों को पराया होते देखा है।।
आग अगर दिल में लगी हो ज़ुबान तक उसे मत लाओ।
समय रूपी पानी से आग दिल की अपनी बुझाओ।
लफ्ज़ रूपी आग सुलगती, धड़क-धड़क कर जलती है।
बोलने वाले को होश नहीं जुबां क्या-क्या उगलती है।।
रोष में कभी होश न खो बैठना कहते हैं यही ज्ञानी।
करते पसंद सभी जब निकलती जुबां से शीतल वाणी।।
