लफ्ज़
लफ्ज़
लफ्जों की आग में
कितने रिश्ते झुलस गए,
जो प्रेम से रहे वो
गिरने से पहले सम्भल गए,
उनकी वो मीठी बातें
कड़वाहट में बदल गई,
छोड़ गए हमें मझधार में
वो कितना बदल गए,
बातें जो करनी थी उनसे
सब अनकही रह गई ,
जब कहना चाहा तो
जाने वह किधर निकल गए,
लफ्जों की आग में
कितने रिश्ते झुलस गए,
जो प्रेम से रहे वो
गिरने से पहले सम्भल गए!
