लफ्ज़ ए आशिक
लफ्ज़ ए आशिक
गगन की स्याही में लपेटे उन रंगों की छाया में
तुम छुपी हुई कोई ख्वाहिश हो,
धुंधली सी नज़रों के लिए इंद्रधनुष जैसा
यूं पेश करती कोई नुमाइश हो
चंचल मन में ठहरा हुए वो नगमे की तरह
आंचल में छुपी हुई वो सहमी पलकों की तरह,
छू लो तो छुप जाने वाले पत्तों की तरह
हमेशा गायब रहने वाले छिपकली की तरह
नज़रों में जादू है या है नशा
हटते नहीं ये चेहरे यूं बे वजह
सूर्य की किरण जहां फिकी पड़ जाए
उसी वक्त चेहरा तेरा नजर आए
बयान ना कर सकूं ऐसा खुमार है तेरा
कहीं गुम ना हो जाए वो असर तेरा
खो ही जाऊं कहीं बातों में तेरे
डर तो है ये अब है तेरा