लोकतंत्र
लोकतंत्र
लोकतंत्र हमको मिला है,
जैसे कोई हो इक वरदान।
इसमें तो शामिल है कितने,
वीर शहीदों का बलिदान।
वर्षों तक अपना ये भारत,
अंग्रेजों की हुकूमत का था गुलाम।
उनकी यातनाओं और उनके कितने,
ज़ुल्मों का था वो शिकार।
वीर शहीदों को केवल था,
एक ही जुनून सिर पे सवार,
आज़ादी तो हर हाल में लेंगे,
चाहे न्यौछावर हो जाएं प्राण।
उनकी मेहनत और लगन से ही तो,
मिली हमको गुलामी से निजात।
खुद को मिटाकर भी दी हमको,
उन्होंने लोकतंत्र की प्यारी सौग़ात।
पर बदले में हमने उनके,
कुचल ढाले हैं सारे अरमान।
लोकतंत्र में लोक का ही,
बदल डाला है हमने इतिहास।
जात-पात और धर्म के नाम पर,
किये हैं हर जगह कत्लेआम।
लड़ाई, झगड़े करके हमने,
घटाया है खुद ही खुद का मान।
लालच की गिरफ्त में आकर,
किया है सच्चाई का व्यापार।
देश को धोखा देकर हमने,
बढ़ाया है हर जगह भ्रष्टाचार।
अपनी ही सर्वजनिक सम्पति का,
अपने ही हाथों से किया है हमेशा नुकसान।
ग़ैरों से मिलके अपने ही लोकों पे,
किये हैं हमने अत्याचार और वार।
विदेशी भाषाओं और वेशभूषाओं को
अपनाकर,
दिया है हमने उन्हें बेहद ही मान।
अपनी भाषाओं और वेशभूषाओं को भुलाकर,
किया है हमने उनका अपमान।
आखिर कब हम विदेशी चालों से बचेंगे,
और कब करेंगे अपने लोकतंत्र पे हम अभिमान।
कब अपने लोकतंत्र के लोगों को अपना समझेंगे,
और करेंगे हम अपने ही लोगों का सन्मान।
आखिर कब अपनी आपसी एकता से,
खुद के लोकतंत्र को बनाएंगे फौलाद।
आखिर कब अपने शहीदों के सपनों को,
करेंगे हम सब मिलकर साकार।
आखिर कब होगा लोकतंत्र में,
लोक की बुराई का हर जगह नाश ।
आखिर कब होगा लोगों के सर पे,
सच्चाई और ईमानदारी का ताज ।
जिस दिन होगा लोकतंत्र में,
निज हित का हर कहीं पर त्याग,
असल में उसी दिन से होगा,
हमारा लोकतंत्र हर विवाद से आज़ाद।
तभी से देश में होगा ,
हरतरफ शाँति का राज।
तभी से ही लोकतंत्र में होगा ,
हमारे भारत का हरएक लोक आबाद।