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Dr.Purnima Rai

Abstract

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Dr.Purnima Rai

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लम्हें

लम्हें

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एक लंबे अंतराल के बाद

खुशी का ठिकाना न रहा

जब अपने मिले !!

कुछ दिन से नासाज थी

तबीयत

लगता था कहीं

आखिरी न हो मेरा दिसंबर

पर अपनों से मिलकर

एकदम ठीक हो गया

स्वास्थ्य !!

तभी कहते हैं सब

गम जमाने में भरा पड़ा है।

औरों का गम बाँट लो हो सके !

क्या पता यह वक्त

दुबारा मिले या न मिले !!

होंठों पे हँसी बिखरे या न बिखरे

समेट लो जाते हुये लम्हों को

नव वर्ष में हम रहे या न रहें!

अपने-बेगानों से फिर कभी

शिकवा गिला करें न करें!!


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