लम्हा लम्हा....
लम्हा लम्हा....
ज़िन्दगी है लम्हों का कारवां
जो मिलीं है यहां उसे समेट लो
क्या पता सफ़र में
कहीं काम आ जाये
एक बार जो मौज
किनारे को छू कर निकल जाती है
वह दोबारा वापस नहीं आती
सिर्फ कुछ रतूबत छोड़ जाती है
सपना हो या हकीक़त
हर लम्हे का भी सिलसिला
कुछ वैसा ही है
बस खट्टी-मीठी यादें रह जाती है
कुछ महफूज़ यादें
बिस्तर में पड़े सिल्वटों की तरह
गले तो लगा लेती है
पर अगले ही पल कहीं समा जाती है
सफ़र में कुछ गिले-शिकवे होंगे
कुछ प्यार मोहब्बत भी होंगी
यकीनन किसी ना किसी मोड़ पर
एक एक काहानी बन कर उभर ही आएंगी
माना कि लम्हा अलविदा का
है बड़ा मुश्किल
पर एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि
चलती का नाम ज़िन्दगी ......।।