लक्ष्य
लक्ष्य
छू लो आसमां , चूम लो सितारों को
ये खुला गगन तुम्हारा है
ये सारा जहॉं तुम्हारा है ।
चमक उठो सितारों सा
दमक उठो गरजते बादलों सा
अब ये इरादा तुम्हारा है ।
अग्नि से भी तेज
प्रज्वलित कर सके जो खुद को
तो ये अग्नि भी तुम्हारा है ।
सूर्य के प्रकाश से भी तेज
प्रज्वलित हो सके तो
ये सूर्य भी तुम्हारा है ।
आसमां के सितारों से भी ज्यादा
बना सके जो आशियॉं जहॉं में
तो ये आसमां भी तुम्हारा है ।
तपता रहे सूरज जब तक
तपते रहो तुम
चॉंद की शीतल काया मे भी
जागते रहे तुम ।
आशाओं के इंतजार मे
करवट बदलते रहो तुम
आने वाले सुबह के इंतजार में
सोने न दो खुद को तुम ।
शायद वो आने वाला दिन
तुम्हारा हो ! तुम्हारा हो !
तुम ही हो गुरू खुद के
टटोलेगे अगर एकान्त के अंधकार में
कर एकाग्र चंचल मन को
पाओगे “ लक्ष्य ’’
अंतःमन में तुम ।
देखकर सूरज की लाली
चॉंद की चॉंदनी
और बादल का पानी
फैला दो ऐसे खुद को तुम
की लगे सारे जहाँ मे
सिर्फ हो तुम ।
गिरोगे कभी जो
लगेगा ज्योति पुंज हो कोई ,
टुकड़ा सूर्य का कोई
आ गिरा धरा पर
ऐसे बनो तुम ।
सारे जहॉ में ऐसे ,
चर्चा मे बनोगे तुम
पर यह इरादा तुम्हारा हो ,
हॉं उम्मीद तुम्हारी हो
ये लक्ष्य तुम्हारा हो ।
देखो पल-पल बीत रहा
जीवन का भाग छूट रहा
अनमोल वक्त हाथों से
दूर कहीं निकल रहा
आलस्य ने जकड़ लिया
पर मन भाग रहा
इधर-उधर
रूको, सोचो, रोको, पकड़ो
अब यह उम्मीद तुम्हारी हो
यह प्रण तुम्हारा हो ।
समय है और कितना बाकी ,
ये न सोचो तुम
जगह है जहॉं में कितना
ये न सोचो तुम |
लक्ष्य कहॉं है, प्रण कहॉं है ?
मेरे जीवन का आधार कहाँ है ?
मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है ?
लक्ष्य कहॉं है, प्रण कहॉं है ?
ये सोचो तुम |
रूको मत
चलो तो सही
बढ़ा के कदम जहॉं की ओर,
बना लो अपना
जहॉं को सपना
नहीं कोई अब है अपना
बस लक्ष्य हीं प्रण हो अपना ।
बस आशियॉं सजा लो कोई
ये गति तुम्हारी अब
कहीं रूके नहीं
रुके नहीं ।
मन कहीं बिके नहीं,
इरादा कही टूटे नहीं
ध्यान कही बॅंटे नहीं ,
दिल कहीं टूटे नहीं
बादल कहीं फटे नहीं
पानी कहीं बरसे नहीं
बिजली कहीं गरजे नहीं
बिके तो भी
टूटे तो भी
बटे तो भी
टूटे तो भी
फटे तो भी
बरसे तो भी
गरजे तो भी ,
छोड़ूँगा न मै लक्ष्य अपना ,
तोड़ूँगा न मै प्रण अपना |
ये प्रण तुम्हारा
ये संकल्प तुम्हारा
ये लक्ष्य तुम्हारा
ये ध्यान तुम्हारा
ये ध्येय तुम्हारा
कहीं टूटे नहीं-कहीं छूटे नहीं
यही प्रण तुम्हारा हो, यही लक्ष्य तुम्हारा हो
यही संकल्प तुम्हारा हो |
रोक लो गति इनकी
ये कर्तव्य तुम्हारा हो
आशाओं को खोजो
उम्मीद को जगाओ
सजाओ ख्वाब विश्व विजय की
निश्चय कर साकार करो जीत को,
कर्तव्य को, प्रण को
पर यह संकल्प तुम्हारा हो,
यह मन तुम्हारा हो
यह तन तुम्हारा हो
यह प्रण तुम्हारा हो
यह संकल्प तुम्हारा हो
ये ध्येय तुम्हारा हो
यह लक्ष्य तुम्हारा हो
हॉं यही लक्ष्य तुम्हारा हो ।