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Naresh Sagar

Tragedy

4  

Naresh Sagar

Tragedy

लिपटती .. यादें

लिपटती .. यादें

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किसी अमरबेल की तरह,

तेरी यादें मुझसे हर वक्त लिपटी रहती है

मैं बहुत कोशिश करता हूं उन से छूटने की

मगर उनकी पकड़ इतनी जटिल है कि

मैं जितना उन्हें अपनों से अलग

करने की कोशिश करता हूं

वह अपनी पकड़ उतनी तेज करती जाती है।


तेरी लहराते जुल्फें

उड़ता हुआ आंचल शरारती नैन

गुलाबी होंठ और गालों पर पढ़ते दो भंवर

सभी मेरी आंखों में तैरने लगते हैं

और मैं करने लगता हूं तुझे पाने की कल्पना,

मेरा मन यह मानता ही नहीं कि तुम

अब किसी की संगिनी बन चुकी हो !


बस हर सपना

हर कल्पना हर धड़कन तुझे

अभी भी मेरा ही कहते हैं।

इसमें मेरी कोई गलती नहीं है

क्योंकि मैं तो परवाना हूं

मेरी तो आदत ही यही है कि

जिस शम्मा पर दिल आते उसी पर जान दे दो

चाहे वह शमा किसी और के ही

घर का अंधेरा क्यों ना भगाये।


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