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Naresh Sagar

Children Stories

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Naresh Sagar

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*मजदूर दिवस का कड़वा सच*

*मजदूर दिवस का कड़वा सच*

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आज मजदूर दिवस है ….

जैसे ही यह बात मोहन को पता चला तो वह काम छोड़ देखने लगा ऊंची ऊंची इमारतों की ओर,

आती-जाती गाड़ियों की तरफ

काली काली सड़क की ओर ,

तभी एक आदमी आया और उसे झकझोडते हुए कहने लगा ……..काम क्यों नहीं कर रहा ?

क्या टुकुर टुकुर देख रहे हो ?

बड़ी मासूम और भोली सूरत लेकर मोहन बोला ……साहब आज मजदूर दिवस है ,

सोच रहा था यह सड़क जितनी साफ और काली नजर आ रही है ,यह हम लोगों ने अपना पसीना बहाकर बनाई थी ,

मगर हम अपनी मर्जी से इस पर आज चल भी नहीं सकते !

ऊंची ऊंची इमारतें हमने खून पसीना बहा कर बनाई ,मगर हमारे पास एक कच्चा मकान तक भी नहीं है !

यह लोग तो बड़ी-बड़ी गाड़ीयों में घूम रहे हैं,

मगर हम! हम अपने बच्चों को एक छोटा सा खिलौना भी नहीं दे सकते साहब !

सभी दिवस धूमधाम से मनाये जाते हैं,

मगर ……..

मगर हम तो मजदूर दिवस पर भी आराम नहीं कर सकते ……चलो साहब आज बड़े बड़े लोग नेता सभाएं कर रहे होंगे और बड़े-बड़े भाषण झाड़ रहे होंगे, मगर यदि मैंने काम नहीं किया तो आज भी मेरे बच्चे भूखे ही सो जाएंगे !

मैं तो मजदूर हूँ

कल भी मजदूर था

आज भी मजदूर हूँ ……..

मेरे लिए मजदूर दिवस क्या ?

और रात क्या ?

चलो साहब मैं तो एक बात कहूँ गा ……बस …….

” शिक्षा सुविधाओं से हमेशा रहता दूर हूँ !

हां मैं वही मजदूर हूँ ,हां मैं वही मजदूर हूँ !!”



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