लगन तुझसे लगा बैठे
लगन तुझसे लगा बैठे
टूट गई थी मेरी नैया, कोई नहीं था सहारा,
गैर हाथ छुड़ा चले, बिछुड़ गया निज प्यारा।
ऐसे में सहारा तुम थे, लगन तुझसे लगा बैठे,
इस दुख की घड़ी में बस, तुम थे एक सहारा।।
भूल गये दोस्त सच्चे, उनसे तो पराये अच्छे,
खुशियां घर में जब रही, वो खाते थे लच्छे।
दाता ही सच्चा दोस्त, लगन उनसे लगा बैठे,
मालिक तीन जहां के हो, हम तो बस बच्चे।।
खाली हाथ आया था, खाली हाथ जाना है,
क्षण भंर की ये जिंदगानी, सबने ही माना है।
लगन लगा से दाता से, वो होता एक सहारा,
इस झूठे जग को छोड़कर, प्रभु शरण जाना है।।
धन दौलत के पीछे दौड़ते, साथ नहीं है जानी,
कमा लिये पाप के पैसे, करता फिरे मनमानी।
जग में मिलता है बस सच्चा, वहीं दाता नाम,
एक दिन टूट जायेगा, जैसे हो बुलबुला पानी।।
स्वाद का चक्कर हो बुरा, मारे जाते हैं बेमौत,
चेहरे से शरीफ लगे, दिल में भरा हुआ खोट।
जालिम होती ये दुनिया, बचकर ही रहना है,
पाप कर्म में लीन रहेगा, निश्चित मिलते टोंट।।
भूल जाता है उस प्रभु को, जब खुशियां अपार,
पर वो कैसे भूल गया, जिंदगी मिली है उधार।
मन से उस दाता को, रखना होता हरदम याद,
लगा ले लगन उस शक्ति से, करे जो बेड़ा पार।।
खुशियां जब बीत जाये, आते हैं दुखियारे दिन,
सहारा भी नहीं रहे, जिंदगी बीते दिन गिन गिन।
उस दाता की शरण में, रहता है जन हरदम सम,
शक्ति का नशा है ऐसा, जैसे बन बैठा हो जिन।।
नहीं बड़ा कोई दाता से, रखना इसे दिल से याद,
शाम सवेरे रट ले रट ले, कर ले उससे फरियाद।
छोड़कर जब जाना हो, तब बहुत पछताना होगा,
परहित धर्म की राह पकड़, मत बनना है जल्लाद।