लड़ाई !
लड़ाई !
ये इंसान की लड़ाई है,
इंसान से ही,
धर्म के नाम पर,
काट रहे है
अपने ही भाइयों को।
दावा है एक अच्छी जिंदगी का,
स्त्रियों की बोलती बंद,
कैद काले अँधेरे में,
एक बार फ़िर से।
क्या यही है अच्छी जिंदगी,
बोलने पर मिलती है
मौत !
एक ही धर्म के लोग,
एक ही देश के लोग,
फ़िर क्यों बहा रहे है?
अपनों का लहू।
डर के साये में है,
जिंदगी हर किसी की,
कहाँ जाए, छोड़ कर?
अपना घर, अपना देश।
अचानक से हो गया है जो
अपने से पराया।
सड़कों पर भागती जिंदगी,
पीछा करती मौत,
हाहाकार हर तरफ़,
लाशों के हैं ढेर,
खूनखराबा, हत्या, लूट
जान बचा कर भाग रहे है,
सब कुछ गया पीछे छूट,
जागो, तुम भी जागो,
ये नहीं हैं किसी के भी अपने,
न देखो तुम अब,
भाई चारे के सपने,
तुम बन जाओगे इन का चारा,
नहीं है ये कोई बेचारा,
तुम भी अब आँखें खोलो,
खड्ग उठाओ, जय बोलो,
दया न अब तुम दिखलाओ,
देश और स्वयं को बचाओ।