लड़ाई छोड़ दूं?
लड़ाई छोड़ दूं?
लड़ाई.....
छोड़ दूं......?
मैं किस-किस से लड़ूंगा
इस समाज के ,
उस हिस्से से लड़ूं?
जिसमें औरत
और मर्द के लिए
अलग-अलग मापदंड हैं ।
जहां औरत आज भी ,
अपनी पहचान की पबंध है ।
बेटियां काबिल
होकर भी ,
बाप पर बोझ हैं ।
बेटी बचाओ की आड़ में ,
बेटी न हो,
आज भी यही सोच है।
बलात्कारी की पैरवी में ,
झूठी गवाही चलती है ।
झूठी शान के लिए ,
प्यार की बलिबेदी पर,
आज भी बेटियां चढ़ती हैं।
मैं किस -किस लडूंगा?
समाज के ,
उस हिस्से से,
उन औरतों से लड़ूं
जो अपनी आजादी का ,
नाजायज फायदा उठाती हैं।
रिश्तो को,
तार-तार कर जाती हैं ।
कानूनी दांव-पेचों से ,
पुरुषों को हराती हैं ।
अपने फायदे निकालने के लिए दहेज,
बलात्कार,
अत्याचार के झूठे
मुकदमे करती है।
मैं किस- किस से लडूंगा?
या समाज की,
उस सोच से लडूं।
जहां कोई बोलता ही नहीं
समाज ,,,,,,,,,,,,,क्या कहेगा???
प्रताड़ना सहते रहते।
वो ...............औरत हो
या मर्द समाज के डर से ,
जब कह नहीं पायेंगा।
अपने हालातों से,
कैसे निकल पायेंगा।
खुद को खुद में,
दफन कर जायेंगा।
मैं किस किस से लडूंगा।
समाज के,
उस हिस्से से लडूं।
हिन्दू-मुस्लिम,
भेदभाव से भरे ,
आरक्षण के अंधकार से।
किस से कहूँ......
ना नाश करें ।
इन्सानियत पर,
भरोसा करें।।
समाज में,
किस-किस से लडूं ।
जहां जुबाने हैं ।
सबकी दो धारी ।
किसी के दोस्त नहीं ,
दिलों में है दुश्मनी भरी ।
हर एक के मुंह पर ,
उसके जैसे हो जाते है।
हम क्यों बुरे बने ।
यह कह जाते है ।।
मैं क्या -क्या कहूं -------।
मैं किस किस स से लडूं।
उस प्रशासन से लडूं ।
जिसमें देश की,
अहमियत से बड़ी,
सियासत हो जाती है ।
वोट को लेने के लिए,
चोर बाजारी हो जाती है ।।
उन स्कूलों से लडूं ,
जिनमें मां सरस्वती की ,
नीलामी हो जाती है ।
उन लोगों से लडूं।
जो चंद पैसों के लिए ,
जिंदगी में मिलावट कर जाती है।
या फिर
अपनी सोच से लडूं।
छोड़ दूं ।
यह सोच .......क्यों
बार-बार
मेरी सोच पर ,
भारी हो जाती है।
