shekhar kharadi
Tragedy Classics
बाहरी हलचल में
भीतर द्वंद्व युद्ध है।
आध्यात्मिक ख़ोज में
भावनात्मक दौड़ है।
शांति की तलाश में
संसारिक मोह है।
करुणा के पुकार में
स्वार्थ का प्रवाह है।
मुक्ति की तलाश में
जीने की लालसा है।
ममतामय स्नेह
धनुषाकार वर्ण...
वर्ण पिरामिड ...
शाश्वत नश्वर
प्रेम का स्पर...
क्षणिका
कटीं हुई पतंग
तांका लघु काव...
मोर्डन शहर
द्रौपदी मुर्म...
मुस्तक़िल बोलता ही रहता था मैं, खामोशी ले बैठा हूं। मुस्तक़िल बोलता ही रहता था मैं, खामोशी ले बैठा हूं।
जो वो शाम-ओ-सुबह भी ले जाते तो अच्छा होता। जो वो शाम-ओ-सुबह भी ले जाते तो अच्छा होता।
नकली मुस्कान नकली हंसी लिए खड़े अपनों के बीच नकली मुस्कान नकली हंसी लिए खड़े अपनों के बीच
अपने को पराया और परायों को अपना बना देता है यह सोशल मीडिया, अपने को पराया और परायों को अपना बना देता है यह सोशल मीडिया,
जो होनी में ना हो वो नहीं होता मेरी जाँ वरना दुनिया में क़या नहीं होता। जो होनी में ना हो वो नहीं होता मेरी जाँ वरना दुनिया में क़या नहीं होता।
रामलला कैद से छूटें तो अब .. जन्मदिन पर पत्थर खा रहें है । रामलला कैद से छूटें तो अब .. जन्मदिन पर पत्थर खा रहें है ।
उस बेवफ़ा से बेहतर और भी हैं जहां में बस इक बार कोशिश तो कर। उस बेवफ़ा से बेहतर और भी हैं जहां में बस इक बार कोशिश तो कर।
आसमां छूती मेरी अभिलाषाओं पर कुठाराघात किया था मन की तरंगों पर आसमां छूती मेरी अभिलाषाओं पर कुठाराघात किया था मन की तरंगों पर
वो न्यौते विनाश और क्लेश सुमति बनाती रहती जीवन में वो न्यौते विनाश और क्लेश सुमति बनाती रहती जीवन में
अधूरे मिलन को पूर्ण करने को, दिल से तुझे अपनाना है। अधूरे मिलन को पूर्ण करने को, दिल से तुझे अपनाना है।
उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई। ना दुआओं ने असर दिखाया। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई। ना दुआओं ने असर दिखाया।
गम भूल जाना चाहता जरूर हूं। गम भूल जाना चाहता जरूर हूं।
जिसने मिटाया है मुझको हाथों कि लकीरों से। उसी के मेहंदी में उभर रहे हैं हम। जिसने मिटाया है मुझको हाथों कि लकीरों से। उसी के मेहंदी में उभर रहे हैं हम।
बालश्रम छोटे बच्चों पर आज भी इक अभिशाप है। बालश्रम छोटे बच्चों पर आज भी इक अभिशाप है।
पूछ रही हैं रूठ कर खुशियाँ कहा हैं जीवन पथ जीवन पथ! पूछ रही हैं रूठ कर खुशियाँ कहा हैं जीवन पथ जीवन पथ!
औरत हूं मैं, कोई कठपुतली नहीं। औरत हूं मैं, कोई कठपुतली नहीं।
चौराहे पे खड़ा शख्स ना जाने कब से क्या सोच रहा, चौराहे पे खड़ा शख्स ना जाने कब से क्या सोच रहा,
दुखों से इनका गहरा नाता खुशियां हुई बेगानी हैं बाल श्रमिकों की भी क्या खूब कहानी है। दुखों से इनका गहरा नाता खुशियां हुई बेगानी हैं बाल श्रमिकों की भी क्या खू...
इक जूनून की रात ये बियाबान सुबह लायी है, गौर से देखो, ये अपने ही भाई हैं। इक जूनून की रात ये बियाबान सुबह लायी है, गौर से देखो, ये अपने ही भाई हैं।
ज़रुरत नहीं तेरे इस फ़र्ज़ी प्यार की, जिसमे मेरा कोई वजूद ही नहीं। ज़रुरत नहीं तेरे इस फ़र्ज़ी प्यार की, जिसमे मेरा कोई वजूद ही नहीं।