लालसा
लालसा
नहीं लालसा थी मुझको
किसी देवालय में
स्थान पाने की।
न थी चाह कभी
इस बुत के बाजार में
एक और बुत
बन जाने की।
न देवी थी मैं
न थी मैं परी
मैं हूँ एक स्त्री।
बस एक तमन्ना थी मेरी
खुली हवा में लेनी थी
सांस मुझको
बने रहना था
मुझको बस एक इंसान।
अजन्मा भी मुझे मारा
जीवित भी रही
तो रही अक्सर बेसहारा।
जो तोड़ा मौन मैंने
या तोड़ी कभी जंज़ीरें
तो मिटा दी गईं
मेरे हाथों में बनी
मेरी ही आज़ादी की लकीरें।
लौटा दे कोई मुझे
मेरे कटे हुए पंख
भर लूँ एक बार फिर
मैं अपने हौसलों की उड़ान।
कोई लौटा दे मुझे
मेरे हिस्से की ज़मीन
मेरे हिस्से का आसमान।