लाइफ सायकल
लाइफ सायकल
कभी कभी मैं सोचने लगता हूँ.....
देश के बारें में....
रोजमर्रा की घटनाओं के बारें में....
मीडिया के बारे में...
देश की राजनीति के बारें में....
दुनिया के मौजूदा हालात के बारे में..
ग़रीबी के बारें में....
फुटपाथ पर जिंदगी बिताने वालों के बारें में.....
उन गरीबों की जिजीविषा के बारें में....
पेड़ पौधों के बारें में....
और तो और गली में घूमने वाले कुत्तें के बारें में भी....
मैंने देखा है कि मेरे साथ काम रहनेवाले इतना नही सोचते है.....
वे सब इजी डूइंग में बिलीव करते है....
हैप्पी लाइफ के बारें में बातें करते रहते है....
वे मुझे कहते है यही जिंदगी है.....
दुनिया ऐसी ही चलती रही है और आगे भी चलती रहेगी....
उनके हिसाब से यह सब लाइफ सायकल का हिस्सा है...
वे मुझसे यह सब सोचने के लिए मना करते हैं.....
कहते हैं की इतना सोचना हेल्थ के लिए नुकसानदेह होता है.....
लेकिन ऐसे कैसे होगा?
इन सबके बारें में सोचना मेरा फ़र्ज़ है...
इस मिट्टी का मेरे पर कर्ज़ है....
इनके बारें में किसी ने तो सोचना ही होगा न?
इन सब लोगों ने कभी भी मुझे उनके बारें में सोचने को नही कहा है.....
वे सिर्फ़ मेरी तरफ़ उम्मीद से ताकते रहते है.....
उन निगाहों की आस को मैं नज़रअंदाज़ नही कर सकता....
मैं उठकर खड़ा हो जाता हुँ...
मेरा ज़मीर मुझे पुकारने लगता है...
मुझे उन्हे नाउम्मीद नही करना है...
मुझे सोचना होगा....
उन सबके बारें में मुझे सोचना ही होगा....
मैं बेफ़िक्री से नही रह सकता....
क्योंकि मुझे जिंदा रहना है.......