लाइब्रेरी
लाइब्रेरी
गुजर रहा था लाइब्रेरी की गली से
महक सी आने लगी
लगा बुला रहा कोई मुझे
बड़े प्यार से।
खिड़की से अंदर झांका
कुछ लोगों को एकांत पाया
ध्यान मग्न होकर बैठे थे इतने
बेखबर थे इस बात से
कौन आया, कौन गया।
चला गया मैं अब अंदर
एक नये एहसास को जीने
वो महक फिर से छूने लगी
जब उठा ली पुस्तक किसी बहाने
वो प्यार ही हो चुका था उन पुस्तकों से
जो नहीं देता था, और कहीं जाने।।