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Anuj Bhandari

Children Stories

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Anuj Bhandari

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भरपेट थाली

भरपेट थाली

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 मँगवाई थी तीन चाय की प्याली

चल पड़ा था बाजार की ओर

लेकर हाथ में थैली

भरा था जेब जाते वक्त

अब हो चुका था खर्च से पहले खाली ।

कहाँ गए रुपय मालूम नहीं

किसने काटी जेब दिखा नहीं

किसको पूछता ये भी पता नहीं।

ड़र रहा था अंदर से

खानी पड़ेगी मुफ्त में गाली

छुपना चाहता था कहीं

जहाँ माँ नहीं देखने वाली

ख्याल आया छुपु भी कैसे

ढूंढ लेगी जासूस पड़ोस वाली।

पहुँचने वाला था घर के सामने

जेब थी अब भी खाली

खिचड़ी पकने लगी कच्चे बहाने वाली

खुराफात आना स्वाभाविक था मन में

बोल दूंगा गिर गया था

जब पड़ने वाली होगी गाली।

चिंता कर रही होगी माँ घर में

फिर भी घंटों लगा रहा था पहुँचने में

किस्मत फिर पलटी...

रुपये जब मिल गए आँगन में

खुशी का ठिकाना न रहा

प्याली खरीद लाया मिनटो में।

जेब थी फिर से खाली

पर खुशी थी इस बात की

गाली के बदले मिलेगी अब भरपेट थाली।



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