STORYMIRROR

Rajdip dineshbhai

Classics Fantasy Inspirational

4  

Rajdip dineshbhai

Classics Fantasy Inspirational

क्यूँ बैठे

क्यूँ बैठे

1 min
6

टूटे हुए फूलों को जोड़ने क्यूँ बैठे 

जो मर गए है उस पर रोने क्यूँ बैठे 

हम सही तो है तौर-तरीकों से

फिर हम गलती का धब्बा लगा कर क्यु बैठे


हमारी खुद की बातों की पढ़ाई खत्म नहीं होती 

चार लोगों की बाते लेकर क्यूँ बैठे 

काम बहोत है घर में खुद को समझने समझाने का 

दूसरों के घर मे जाकर क्यूँ बैठे 


पिंजरे में परिंदा हो या परिंदे में पिंजरा 

यानी हम परिंदे को पिंजरे में छोड़ क्यु बैठे

जाति का डर लगा, ऊंच नीच जाती रखी गई 

पड़ गये हल्के घर, ऐसा सस्ता सीमेंट लेकर क्यूँ बैठे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics