Dr. Diptiranjan Behera
Tragedy
मैं तो हवा का झोंका था
जो आके चला गया।
तुम तो लहर थी फिर भी
लौट के क्यों नहीं आयी।
हुनर
खयाल
आसा
माँ
क्यों नहीं
मिलता रहता हू...
बिन कहे
बदलो भेस
अपनाते भले न हो मुझे पर मेरी बद्दुआओं से तो हैं डरते ! अपनाते भले न हो मुझे पर मेरी बद्दुआओं से तो हैं डरते !
लो अग्नि संस्कार किया स्त्री विमर्श में अपने हाथों से लिखें पृष्ठों का। लो अग्नि संस्कार किया स्त्री विमर्श में अपने हाथों से लिखें पृष्ठों का।
कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था। कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था।
अजी नौकरी का भी अपना मज़ा है। जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है। अजी नौकरी का भी अपना मज़ा है। जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है।
राजनीति सुविधा हुई ,बनी आज व्यवसाय। मीठा-मीठा गप्प सब, कड़वा थूकत भाय।1। राजनीति सुविधा हुई ,बनी आज व्यवसाय। मीठा-मीठा गप्प सब, कड़वा थूकत भाय।1।
क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे। क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे।
मैं तो एक वैश्या हूं, और वैश्या ही कहलाऊंगी जिस्म बेचकर ही, खुद को जिन्दा रख पाऊंगी। मैं तो एक वैश्या हूं, और वैश्या ही कहलाऊंगी जिस्म बेचकर ही, खुद को जिन्दा रख ...
अपना पट शीघ्र न खोलूँगी कुछ मुझको तो मनाये वो अपना पट शीघ्र न खोलूँगी कुछ मुझको तो मनाये वो
कितने तो आँसू बहे होंगे इन आँखों से, घर ये खारे पानी का। कितने तो आँसू बहे होंगे इन आँखों से, घर ये खारे पानी का।
बड़ा खामोश लम्हा है इन चुप्पियों के दौरान भी। बड़ा खामोश लम्हा है इन चुप्पियों के दौरान भी।
'जीवधारी देश', ख़ुद को मानते हैं राज, सत्ता सब बदलना चाहते हैं। 'जीवधारी देश', ख़ुद को मानते हैं राज, सत्ता सब बदलना चाहते हैं।
दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर। दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर।
और कर रहे हैं शर्मिंदा सच को, झूठ के झुंड में। और कर रहे हैं शर्मिंदा सच को, झूठ के झुंड में।
जीवन इतना सरल नहीं जीवन इतना सरल नहीं
राजनीति के खेल में क्या हार क्या जीत ; ना कोई शत्रु यहां और ना यहां कोई मीत ! राजनीति के खेल में क्या हार क्या जीत ; ना कोई शत्रु यहां और ना यहां कोई मीत !
मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है
टूट गई मन की गागरिया टुकड़े झोली भरती। रंगहीन ले...य़ टूट गई मन की गागरिया टुकड़े झोली भरती। रंगहीन ले...य़
सड़क काली हो या भूरी जहां से भी निकलती है स्याह कर देती है। सड़क काली हो या भूरी जहां से भी निकलती है स्याह कर देती है।
है कितना क्षण भंगुर यह जीवन, अगले पल का पता नहीं। है कितना क्षण भंगुर यह जीवन, अगले पल का पता नहीं।
किन्तु, ख़ुद ख़त्म होने से पहले ही, पहुँच में उसके दूसरी कुर्सी। किन्तु, ख़ुद ख़त्म होने से पहले ही, पहुँच में उसके दूसरी कुर्सी।