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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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क्यों इतना गुरुर करते हो

क्यों इतना गुरुर करते हो

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किराये की कोठरी पे क्यों तुम इतना गुरुर करते हो

मालिक से मिलने का तुम जत्न क्यों नहीं करते हो

कितने बड़े बेवकूफ़ रे तुम पागल इंसान लोग हो,

रुहानी खजाना छोड़ कंकर, पत्थर को जमा करते हो

कयामत के दिन खुदा को तुम क्या जवाब दोगे,

अनमोल मनुष्य-जन्म माया-मोह में बर्बाद करते हो

दूसरों की तरक़्क़ी देखकर, मन में ईर्ष्या भरते हो

खुद को दलदल का फूल तुम क्यों नहीं करते हो

ख़ुद को वक्त रहते संभाल दम निकलने से पहले,


सांसो के शीशे पे क्यों तुम रोज पत्थर फेंकते हो

जिंदगी जीने के लिये है, काटने के लिये नहीं है,

क्यों खुद को तुम जग के पिंजरे में कैद करते हो

खुद को किराये की कोठरी से तू मुक्त कर साखी,

क्यों फिजूल में बहुमूल्य जीवन बर्बाद करते हो

ख़ुद को अब तो तुम आज़ाद कर भी लो, इंसानों,

क्यों मरने से पहले रोज-रोज तुमलोग मरते हो

खुद का जीवन बनाओ तुम भाइयों पेड़-पौधे सा,

जो मरने के बाद भी हमारे लिये वो ईंधन देता है,

क्यों तुम बुलबुले से जीवन पर इतना गर्व करते हो

बनो अच्छे इंसान फिर देखो मरने के बाद तुम न मरते हो



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