क्यो ऐसे हैं?
क्यो ऐसे हैं?
हुजूर खुद के ही ज्यादा करीब हूँ,
इसलिए तुम्हे अहमक लगती हूँ।
सबसे खुद को महफ़ूज रखती हूँ,
इसलिए उनको शातिर लगती हूँ।
मैंने रखे है कुछ लिहाज आप के,
इसलिए जनाब जहीन लगती हूँ।
लौटा देती हूँ उधार का तल्ख सब,
इसलिए जी बदतमीज लगती हूँ।
यहां पोछा है आईना रोज-ब-रोज,
इसलिए गर्द को खराब लगती हूँ।
