जब से चली हूँ, पाबंद हूँ इसी में ख़त्म होता नहीं, कैसा सफ़र है जब से चली हूँ, पाबंद हूँ इसी में ख़त्म होता नहीं, कैसा सफ़र है
अहमक थे हम जो उसे दिल दे बैठे उसने तो सिर्फ हमारे साथ शरारत की। अहमक थे हम जो उसे दिल दे बैठे उसने तो सिर्फ हमारे साथ शरारत की।
लौटा देती हूँ उधार का तल्ख सब, इसलिए जी बदतमीज लगती हूँ। लौटा देती हूँ उधार का तल्ख सब, इसलिए जी बदतमीज लगती हूँ।