क्या मालूम
क्या मालूम


हर वक़्त औरों को हूँ देखता
उनमें हूँ कुछ ढूँढता
ना जाने क्या हूँ चाहता
जो मांगा था वो मिल गया
सबसे कब ये कहूँगा
क्या मालूम ...
देखता हूँ हँसी औरों की
महसूस करता हूँ खुशी औरों की
जो बेमतलब है मेरे लिए
सुनता हूँ बातें औरों की
अपने दिल की कब कहूँगा
क्या मालूम ...
खिले खिले से चेहरे है
लगता है ये सब बहरे है
ना गूँज किसी आवाज़ की
ना फ़िक्र कल और आज की
मैं कब ऐसे जीयूंगा
क्या मालूम ...
छिपे हुए आँसू आँखों में
पलकों पे जो आते नहीं
कुछ ख़्वाब है अधूरे से जो
जागने पर भी जाते नहीं
पूरे कब इनको करूँगा
क्या मालूम ...