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Krishna Sinha

Tragedy

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Krishna Sinha

Tragedy

क्या कहूं

क्या कहूं

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क्या कहूं

कि लब खामोश हैं,

बैचेन है शब्द,

कलम उदास है।


तेरा जाना कहर सा

यक़ीनन है, मुझ पर

चीखता है दर्द दिल में

पर आवाज़ खामोश है...

क्या कहूं की लब खामोश हैं।


घुमड़ता है बवंडर

यादों का,

बिताया तुम्हारे संग

हर एक लम्हा

चलचित्र सा चलता है

ढुलकते हैं आंसू

हज़ारो कोशिशों पर भी..

जुबां चाहती भी है तुम्हें रोकना

पर उसे कुछ रोक लेता है।


क्या कहूं अब मैं तुमको

कि मेरी दुनिया खामोश है..

लब खामोश है, कलम उदास है।



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