क्या इसी को प्यार कहते हैं
क्या इसी को प्यार कहते हैं
तुम्हारी आवाज़
सरगोशी करती है
रात भर कानों में मेरे !
और अधूरी नींद से
चौंक कर
उठ जाती हूँ मैं..
तुम्हारे ख़याल से ही,
हर आहट ..
तुम्हारे क़दमों का
अहसास दिलाती है,
मेरे हमराही ..
मेरे दिल का क्या कसूर?
हर साये में
उभरती है तस्वीर तेरी
और तुमसे ख़्यालों में
बातें करके
खुद से ही
शरमा जाती हूँ मैं,
क्या इसी को
प्यार कहते हैं?
शायद इसी को
प्यार कहते हैं ।

