क्या हूँ मैं ?
क्या हूँ मैं ?
क्या हूँ मैं ?
सिर्फ एक लड़की !
नहीं---
उससे भी ज़्यादा
एक बेटी,
एक बहिन,
एक पत्नी
एक माँ
या एक शिक्षिका
क्या हूँ मैं ?
एक कवयित्री,
एक पत्रकार,
एक दार्शनिक,
एक यात्री,
एक गृहणी
या केवल एक इंसान
क्या हूँ मैं ?
कठिन प्रश्न है यह
खुद को जानना कितना कठिन
मैं एक लड़की, एक इंसान हूँ।
मानवीय कमजोरियों का होना
स्वाभाविक है,
लेकिन
मुझे चाहिए,
अपनी जमीन,
अपना आकाश,
अपने सपने,
अपनी उड़ान,
अपने होने का अर्थ
और
अपनी पहचान...