क्या है प्रेम ....
क्या है प्रेम ....
क्या है प्रेम ?
मात्र ढाई अक्षर ...
में समेटे हुए है
पूर्ण ब्रह्मांड ....
बंधन नहीं ...
मुक्ति का देता है सन्देश
काम से निष्काम ..
स्वार्थ से परमार्थ ..
लौकिक से अलौकिक ...होने की
प्रक्रिया है ...प्रेम
प्रेम कल कल नदिया के जल सा
प्रेम छल छल गिरते झरने के निर्झर सा
प्रेम हवा के झोंके सा ...
प्रेम सूर्य की उज्ज्वल किरन सा..
प्रेम धरती सा सहनशील ..सृजन सा
प्रेम आकाश सा सीमाहीन ...
पंचतत्वों सा पावन
मानो बरखा में सावन
मधुर मनोहर मनभावन
सदैव प्रसन्नचित्त निःस्वार्थ मन
इंद्रधनुषी नवरंगों से युक्त
स्वार्थी कामनाओं से मुक्त ...
प्रेम भाव है ....