क्या.... ढूंढ रहे
क्या.... ढूंढ रहे
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जीवन की जो सार्थकता बतलायें।
मानव जीवन के सोपानों को जो सिद्ध कर जाये।
नई सोच से,
नई लगन से,
जीवन के आयाम बनायें ।
ऐसा ही कुछ ढूंढ रहा हूँ।
हर मुश्किल से जा टकराये।
हिम्मत बांध खड़ा हो जाये।
झूठ के सौ पैर हुए,....तो क्या?
सच के साथ अडिग रह जायें।
सच्चा प्यार हो दिलों में,
ढोंग न दिखावा हो ।
चेहरों के अनगिणत मुखौटों में,
जो चेहरा एक चेहरे वाला हो।
ऐसा ही कुछ ढूंढ़ रहें है।