क्या छिपा रहे हो
क्या छिपा रहे हो


क्यों छुप रहे हो क्या छिपा रहे हो
किस आस को जाते देख रहे हो
चाँद सा सुंदर चेहरा छिपाये नहीं
छिपता
ये पलकें इनमें समायी ख्वाहिशें
टक टकी आंखों में उनकी यादें
नहीं छिपती वो ख़ुशियों के पल
जो प्रेमी समेट ले गया
वो आस जो ग़म में बदल दिया
मगर छुपा कर भी दिख रही है
तुम में
इक चिंगारी जो न जाने कब
भड़क उठे
दहलीज़ से सटे दिल पर तेरा पहरा
गलियां जो रोक रखें हैं तेरे अरमान
ललाट है सीने में भरने को उड़ान
बस ज़रा सी देर है थोड़ा सा
अंधियारा
दूर कहीं तेरा मंज़र नज़र आ रहा
जहां जिंदगी तुम्हारी इंतजार में
रुकी है
जिस ओर डगर है उस ओर
नज़र झुकी है
कदम बढ़ा लेना
इस बार अपना नसीब
खुद लिखते जाना ।।