कविता
कविता
हम बचपन से यह सुनते आ रहे
किसान अन्नदाता है
लड़कपन में
हम यही सोंचते थे कि
जब पिताजी कड़ा परिश्रम कर
अपनी मेहनत की कमाई से
हमारे लिए
भोजन की व्यवस्था करते हैं
तो किसान कैसे
हमारा अन्न दाता हुआ
मगर जब बड़े हुए
तब समझ आया कि
किसान ठंड ,गर्मी और बारिश में
कड़ी मेहनत कर
अन्न उगाता है
उसी से हमे भोजन मिलता है
हम बारिश,सर्दी और गर्मी से बचाव के
समस्त साधन
जुटा लेते है मगर वह
फ़टे कपड़े में ठंड से ठिठुरता,
बारिश में भीगता हुआ
अपने खेत पर जाकर
खेत जोतता है ,
फसल के लिए बीज डालकर बुआई करता है
और ईश्वर के आगे
नतमस्तक होकर अच्छी बारिश के लिए
प्रार्थना करता है
मगर समय परिवर्तन शील है
कभी बारिश कभी सूखा
तो कभी अकाल पड़ता है
और इन सब का दंश
किसान ही भोगता है
शास्त्री जी ने बड़ी ही
प्रासंगिक बात कही
जय जवान जय किसान
मगर भाग्य का चक्र देखिए
आज वही किसान
देश की राजधानी में
अपने अधिकार की लड़ाई
लड़ रहा है और
देश का हुक्मरान
उसकी अनदेखी कर रहा है
धरती को अपनी
माँ मानने वाला किसान
अकूत मेहनत करने के बाद
भी रसातल में जा रहा है
वहीं देश चलाने वाला हुक्मरान
भ्रष्टाचार के एटीएम का
उपयोग कर हवाई
उड़ान उड़ रहा है
लाख टके का सवाल यह
कि अगर वास्तव में
किसान ने अन्न उगाना
बंद कर दिया
तो क्या होगा ?
चिल्ला चिल्ला कर
भारत को
कृषि प्रधान देश
घोषित करने वाले
नारों के क्या होगा ?