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Akhtar Ali Shah

Drama

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Akhtar Ali Shah

Drama

कविता

कविता

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कविता

परिचित कराता हूँ

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अभावों में जो संतोषी जलाकर आग बैठे हो

जो अपनी ठंड चूल्हे में जला बेदाग बैठे हो।

खुशी का ले के जो अपने लबों पर राग बैठे हो

जो मेहनत कश हो सेहरा में लगाकर बाग बैठे हो।

प्रशंसक हूँ मैं उनका फन को उनके सिर झुकाता हूँ

मैंतुमको असली हिंदुस्तान से परिचित कराता हूँ

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मिटाकर गम के तम को रोशनी में जो विचरते हैं।

हँसी का अपने जख्मों पर लगा मरहम निखरते हैं

नहीं रखते हवेली से जलन ना आहें भरते हैं।

खुदा से डरने वाले कब किसी से लोगों डरते हैं

जो साबीर हैं, मैं उनके सब्र पर कुर्बान जाता हूँ।

मैं तुमको असली हिंदुस्तान से परिचित कराता हूँ ।।

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अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच


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