कविता
कविता
अनमोल रतन है जिंदगी
मिट्टी में न रोल
तकदीर में है क्या लिखा
इसकी चिंता छोड़
सत्य और अहिंसा का
दामन कभी न छोड़
ख्वाब देख फलक तक
हिम्मत कभी न छोड़
हर ज़र्रा कायनात का
दे रहा है सीख
अपना पराया कोई नहीं
हर शख्स है अज़ीज़
अहंकार और द्वेष से
रहना तू कोसों दूर
स्नेह और प्यार है
तेरी नजर का नूर
मधुर वचन से जोड़
टूटे रिश्तों की डोर
पल पल की खुशी बांट
गमों को कर दे दूर
कल और कल की छोड़
तू बस आज में ही जी
चार दिन की है जिंदगी
मुस्करा के मानस जी।