कविता
कविता
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सुरेन्द्र कुमार सिंह चांस
अनुमन्य अनुमान्यताओं
से
खुशी
और तुम्हारे व्यवहार से
उदासी
जैसे चैन भी बेचैन हो गया है।
किसी अंधेरी रात के
गुजर जाने का
इंतजार कब किया है हमने
अपने अंदर की रौशनी में
चलते रहे चल रहे है
संवैधानिक शब्दावली में विश्वास
और
तुम्हारा
उनसे किनारा करना
विश्वास को हिलाने का
प्रयास
करना
और करते रहना
भुला जाता है
राज है
राज जैसा कुछ और।
बहती हुई नदी के
पास
कभी किनारे बैठना
कभी किनारे पर अपने को छोड़कर
नदी के साथ बहना
उसी में डूबना उतरना
डूब जाना
यूं ही अच्छा नहीं लगता
सब कुछ
खोना भी पाना भी
जाने क्यों तुम्हारे आकर्षण
से अलग होकर
विरक्त होते हुए
खुशी की लहरे
जब
बेतरतीब उठने लगती है
जाने क्यों मन
शांति सा स्थित
आनंदित हो तुम्हे ही
निहारने लगता है।
