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Shashibindu Mishra

Abstract

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Shashibindu Mishra

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कविता

कविता

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'विस्तृत धरा-सा'


तेरी निश्छल हँसी / आज कुछ कह गयी / अन्तर्मन को छू गयी /

साँसों में मिल गयी / शांत-सदया प्रकृति-सी ढल गयी /

आत्मा में तेरे शब्द उतर गये / सीधे वहीं बस गये /

इसे प्यार कहें या अन्तर्मन का लगाव / जुड़ गये हृद्तन्त्री के तार औ' भाव /

प्यार तो बस प्यार है / जो साँसों को छूता है / देह का भान नहीं रहता /

अदृष्ट आत्मा से जुड़ता / वह जितना ही सूक्ष्म / उतना ही विस्तृत धरा-सा ।



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